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Friday, May 20, 2011

शाही शादी में गुम हुई के. बालाचंदर की ख़बर

एक और पुरोधा को पिछले दिनों भारतीय सिनेमा में अमूल्य योगदान के लिए फिल्म जगत के सबसे बड़े राष्ट्रीय सम्मान दादा साहेब फाल्के अवॉर्ड से सम्मानित किया गया। दक्षिण सिनेमा के कई सितारों को जन्म देने वाले कैलासम बालाचंदर को बतौर निर्माता-निर्देशक तमिल सिनेमा के स्तर को उच्चकोटि का बनाने का श्रेय दिया जाता है। उन्होंने तमिल के अलावा कन्नड़, तेलुगू और हिंदी फिल्मों में भी निर्देशन किया। तमिलनाडु के तंजावुर में 1930 में जन्मे बालाचंदर रूपहले परदे के पीछे जलवा बिखेरने से पूर्व मद्रास में एकाउंटेंट जनरल के दफ्तर में नौकरी करते थे। फिल्म निर्माण से जुड़ने से पहले वह अपनी ड्रामा टीम श्रागिनी रीक्रिएशंस के साथ काफी समय तक नाट्य लेखन का काम किया। बहुमुखी प्रतिभा के धनी बालाचंदर ने कई नाटक लिखे, जिन पर आगे चलकर कई फिल्में भी बनाई गई। इनमें प्रमुख हैं 1964 में कृष्णा पंजु की फिल्म सरवर सुंदरम और मेजर चद्रकांत पर आधारित हिंदी फिल्म ऊंचे लोग, जिसे निर्देशित करने का काम किया था फणी मजूमदार ने। बालाचंदर पिछले 45 सालों से फिल्म निर्माण के क्षेत्र में सक्रिय हैं और जब उन्होंने इस सर्वोच्च सम्मान से खुद को नवाजे जाने की खबर सुनी तो इसे अपने जीवन का सर्वाधिक गौरवपूर्ण क्षण करार दिया। लीक से हटकर फिल्में बनाने के लिए अपनी अलग पहचान रखने वाले बालाचंदर को कई सुपर स्टारों को तराशने का श्रेय दिया जाता है। उन्होंने रजनीकांत, कमल हासन, प्रकाशराज, विवेक और जयाप्रदा, श्रीदेवी, सुजाता, सरिता व रति अग्निहोत्री के अलावा नए दौर के कई सितारों को दर्शकों से रू-ब-रू कराया। बालाचंदर महान फिल्मकार एमजी रामचंद्रन की फिल्म दीवाथाई1964 के लिए पटकथा लिखने के बाद उनकी सलाह पर निर्देशन के क्षेत्र में उतरे और 1965 में नीरकामुझी को निर्देशित किया। अपनी पहली ही फिल्म से उन्होंने दर्शकों के बीच खासी लोकप्रियता हासिल कर ली। मजेदार बात यह रही कि उन्होंने खुद की लिखी एक पुराने नाटक को फिल्म की कथावस्तु के रूप में ढाला। इसके बाद उन्होंने कलाकेंद्र नाम से एक प्रोडक्शन हाउस खोला और यहां से शुरू हो गई उनके फिल्मी सफर में सफलता की दास्तां। उन्होंने कई फिल्मों का निर्माण और निर्देशन किया जिसके लिए उन्हें कई श्रेणियों में राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार दिए गए। पांच तमिल फिल्मों के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ फीचर फिल्म का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला। अपने प्रोडक्शन के अलावा बालाचंदर ने दूसरे प्रोडक्शंस के लिए भी फिल्में बनाई। उन्होंने 1966 में एवीएम प्रोडक्शन के बैनर तले तमिल भाषा में मेजर चंद्रकांत का निर्माण किया। इसके बाद एक और बहुचर्चित फिल्म बनाई। यह सुंदरराजन और जयललिता बालाचंदर अभिनीत तमिल फिल्म भामा विजयम थी जो 1967 में बनाई गई थी। बाद में इसी फिल्म को तेलुगू में भाले कुडालू नाम से रिमेक किया गया। इस फिल्म की लोकप्रियता को देखते हुए 1968 में हिंदी में भी तीन बहुरानियां के नाम से फिल्म बनाई गई। बालाचंदर की ज्यादातर फिल्में शहर में रहने वाले मध्यम वर्गीय समाज में घटित घटनाओं पर आधारित होती थीं। साथ ही उनकी फिल्मों का समापन मध्य वर्ग के समाज की नैतिकता को स्वीकारते हुए होता था। सत्तर के दशक में उनकी कुछ कालजयी फिल्में काविया थालिआवी वर्ष 1970 में, अपूर्वा रागांगल, 1975 में, मनमाथा लीलाई, 1976 में, अवरगल वर्ष 1977 में और मारो चारिथरा वर्ष 1978 में आई। मारो चारिथरा एक तेलुगू फिल्म है जिसका नायक तमिल भाषी है जबकि नायिका तेलुगू बोलने वाली होती है। दोनों आपस में प्रेम करते हैं, लेकिन दोनों के घर वाले इस रिश्ते के खिलाफ होते हैं, लेकिन बाद में वे शर्त रखते हैं कि यदि प्रेमी-प्रेमिका एक साल तक आपस में नहीं मिलते हैं तो उनकी शादी करा दी जाएगी। इस फिल्म की अपार सफलता को देखते हुए बालाचंदर ने हिंदी में बनी एलवी प्रसाद की वर्ष 1981 में बनी फिल्म एक दूजे के लिए को निर्देशित किया। तमिल और पंजाबी रोमांस पर आधारित लव स्टोरी से कमल हासन और रति अग्निहोत्री ने हिंदी सिनेमा के रूपहले परदे पर पदार्पण किया। यह फिल्म बॉक्सऑफिस पर जबर्दस्त रूप से हिट रही। इसकी सफलता से रति अग्निहोत्री रातोंरात स्टार बन गई, लेकिन हासन को इसका खास फायदा नहीं मिला। बालाचंदर ने हासन के लिए एक और हिंदी फिल्म जरा सी जिंदगी बनाई पर यह बॉक्सऑफिस पर असफल ही साबित हुई। बालाचंदर ने सिर्फ रोमांस पर आधारित फिल्में ही नहीं बनाई, बल्कि अन्य विषयों पर भी फिल्में बनाई। राजनीति पर आधारित थानिर-थानिर फिल्म कोमल स्वामीनाथन और खुद की लिखी एक कहानी अच्चामिलाई-अच्चामिलाई पर आधारित थी, जो काफी सफल रही। इस फिल्म में पानी के लिए ग्रामीणों के संघर्ष को जिस तरह से दर्शाया गया है, वह काबिले तारीफ है। कैलासम बालाचंदर ने वर्ष 1985 में एक और फिल्म बनाई, जो संगीत प्रधान थी। यह फिल्म सिंधु भैरवी के नाम से बॉक्सऑफिस पर हिट हुई। इस फिल्म की नायिका सुहासिनी को बेहतरीन अभिनय के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार मिला। इन फिल्मों में बालाचंदर के अंतर्मन को समझा जा सकता है जिसमें उनकी पीड़ा और दर्द झलकती है। एक फिल्मकार के रूप में उनका योगदान बहुत ज्यादा है जिसे भूला पाना शायद ही किसी के लिए संभव हो सके। ब्राह्मण परिवार में जन्मे बालाचंदर को तमिल सिनेमा कालीवुड में इयाकुनार सिकारम यानी शीर्ष निर्देशक के नाम से जाना जाता है। बड़े परदे के अलावा उन्होंने छोटे परदे पर भी सफल पारी खेली। 81 साल की उम्र में भी वह सक्रिय हैं। यह भाग्य बहुत कम लोगों को ही नसीब हो पाता है। उनकी प्रसिद्ध धारावाहिकों में छोटी सी आशा हिंदी फिल्म भी शामिल है। उन्होंने चार भाषाओं में 100 से ज्यादा सितारों को तैयार किया जिनमें कइयों ने सफलता के झंडे गाड़े। ढेरों सितारों को तराशने वाले बालाचंदर ने एमजी रामचंद्रन और शिवाजी गणेशन जैसी महान हस्तियों के साथ काम नहीं किया, लेकिन इससे शायद ही कोई फर्क उन पर पड़ता हो। बालाचंदर दक्षिण सिनेमा के एक महान हस्ताक्षर हैं। उम्र के आठवें दशक में भारतीय सिनेमा के सर्वश्रेष्ठ सम्मान से नवाजे जाने वाले बालाचंदर ने देर से इस पुरस्कार के मिलने पर अफसोस जताने के बजाय इसे तहे दिल से स्वीकार किया है। हालांकि जिस दिन उन्हें इस सम्मान से सम्मानित करने की घोषणा की गई, उस दिन भारत की मीडिया ब्रिटेन के राजकुमार विलियम और कैट की शाही शादी में व्यस्त था और इस खबर पर किसी का ध्यान ही नहीं गया।

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