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Saturday, May 8, 2010

ओवरस्मार्टों की बदमाश कंपनी

इस हफ्ते रिलीज एक प्रमुख फिल्म है बदमाश कंपनी। शाहिद कपूर, अनुष्का शर्मा, मेइयांग चैंग, वीर दास, पवन मल्होत्रा, किरण जुनेजा की मुख्य भूमिका वाली इस फिल्म का निर्माण किया है यश चोपड़ा और आदित्य चोपड़ा ने तथा निर्देशन किया है परमीत सेठी ने। गीत है अन्विता दत्त का और संगीत प्रीतम का। 142 मिनट की इस फिल्म को सेंसर ने दिया है यू/ए सर्टिफिकेट।
अमीर बनने के सपने रॉकेट सिंह भी देखता था और उसके भीतर एक मूल्यबोध भी था मगर यह फिल्म कहानी है उस शाहिद कपूर की जिसे अपने पिता अनुपम खेर की तरह बाबूगिरी का जीवन पसंद नहीं। बाप को हार्ट अटैक हो जाता है,मां गहने बेच देती है पर बेटा बदमाश बन के ही दम लेता है। वह साफ कहता है कि मेरी मेहनत का फायदा मुझे होना चाहिए,मेरे बॉस या मेरी कम्पनी को नहीं। रातोंरात रईस बनने के चक्कर में वह वीर दास, म्यांग चांग और मुंबई में पढ़ने आई अनुष्का शर्मा के साथ फ्रेंड्स कंपनी शुरू करता है। शाहिद अपनी चालाकी से टैक्स बचाकर कंपनी को मुनाफे में लाते हैं मगर सरकार जब एक्साइज टैक्स में जबर्दस्त कटौती करती है तो कंपनी को कारोबार समेटना पड़ता है। फिर ये चारो अपना कारोबार शुरू करने पहुंचते हैं अमरीका जहां और मुसीबतें उनका इंतजार कर रही होती हैं।
टाइम्स ऑफ इंडिया में निखत काजमी ने इस कहानी को दिलचस्प बताया है कि क्योंकि यह आज के युवा की कहानी है जो तुरंत तरक्की चाहता है। दैनिक जागरण में अजय ब्रह्मात्मज के अनुसार,परमीत सेठी ने इस कहानी को रोचक तरीके और नए पेंच के साथ पेश किया है। मगर नवभारत टाइम्स में चंद्रमोहन शर्मा ने माना है कि निर्देशक अपनी कहानी समेट नहीं पाए हैं और फिल्म का क्लाइमेक्स उलझा हुआ है। हिंदुस्तान में विशाल ठाकुर ने शाहिद के प्लान और क्लाइमेक्स को शानदार बताया है। मगर,कैच मी इफ यू कैन टाइप ओवर स्मार्टनेस के कारण दैनिक भास्कर में राजेश यादव लिखते हैं कि फिल्म के नायक और उसके दोस्तों को धोखे के व्यापार में इतना पारंगत दिखाया गया है कि दर्शक घटनाओं पर विश्वास नहीं कर पाता । नई दुनिया में मृत्युंजय प्रभाकर मानते हैं कि निर्देशक ने बड़ी ही सहजता से इसे बनाया है। उनका तर्क है कि यह फिल्म हमारे सामने कोई नायक नहीं बल्कि पात्रों को लेकर आती है और यही इस फिल्म की खासियत है।
फिल्म के दो गाने रिलीज के बाद से ही टीन एजर्स में हिट हैं । राजेश यादव के अनुसार, फिल्म में संगीत ठीक-ठाक है और चस्का - चस्का और जिंगल- जिंगल गीत युवा दर्शकों को पसंद आने लायक हैं। चंद्रमोहन शर्मा ने माना है कि टाइटिल सॉन्ग के अलावा ये अय्याशी का फिल्माकंन अच्छा बन पड़ा है। मृत्युंजय प्रभाकर ने संगीत को,फिल्म के लिए सहायक बताया है। राजस्थान पत्रिका के रामकुमार सिंह के हिसाब से गीत-संगीत औसत हैं। टेलीग्राफ में प्रीतम डी.गुप्ता और निखत काजमी को फिल्म का संगीत निराशाजनक लगा है। विशाल ठाकुर को विश्वास है कि लाउड और पब क्लास वालों को संगीत पसंद आएगा।

स्टेट्समैन में एम. पॉल,मेल टुडे में विनायक चक्रवर्ती और अजय ब्रह्मात्मज को,बिलीव इट ऑर नॉट टाईप इस फिल्म में शाहिद मैच्योर दिखे हैं। प्रतीम डी. गुप्ता,निखत काजमी और चंद्रमोहन शर्मा ने शाहिद , वीर दास , म्यांग चांग और अनुष्का शर्मा को कैरेक्टर में एकदम फिट माना है,हालांकि मेल टुडे ने शाहिद के चक्कर में इनके रोल को छोटा किया गया माना है। मगर राजेश यादव ने लिखा है कि शाहिद कपूर ने फिल्म कमीने में जितना बेहतर अभिनय किया था इस फिल्म में उसके आसपास भी नजर नहीं आते । राजेश यादव को मियांग चैंग और वीर दास ने प्रभावित किया है। मृत्युंजय प्रभाकर ने चारों मुख्य कलाकारों की तारीफ की है।
90 के दशक की पृष्ठभूमि पर बनी इस फिल्म में इस बात का कोई एक्सप्लानेशन नहीं है कि कैसे चार बेरोजगार अमरीका जाने में कामयाब हुए,वहाँ कारोबार शुरु किया और बैंक से लाखों डॉलर लोन लेने में भी कामयाब हो गये! छह दिन में लिखी गई कहानी का यही हश्र होना था। एम.पॉल कहते हैं कि फिल्म का आधा नुकसान तो कहानी को 1990 की पृष्ठभूमि पर आधारित करने से हुआ है। शुरुआती दृश्यों में अनुष्का ने शाहिद को चूमने में खूब समय बिताया है। परन्तु,रामकुमार सिंह दो टूक लिखते हैं कि अमरीका की लोकेशन्स,जुआघर और समंदर किनारे जिस्म उघाडे पडी कन्याओं से कहानी नहीं बुनी जा सकती। उन्होंने इसे कुल मिलाकर एक दुखद अनुभव बताया है। आधी-अधूरी स्क्रिप्ट लेकर फिल्म बनाने के निराश हिंदुस्तान टाइम्स के मयंक शेखर ने इसे दो स्टार दिए हैं। मगर अजय ब्रह्मात्मज को,पहली फिल्म के निर्देशक के तौर पर परमीत सेठी का नैरेटिव इंटरेस्टिंग लगा है। उन्होंने इसे बासी विषय के बावजूद ताजगी का एहसास देने वाली फिल्म मानते हुए ढाई स्टार दिए हैं। राजेश यादव ने भी इसे मनोरंजन के नाम पर छलावा बताते हुए केवल ढाई स्टार दिए हैं। विनायक चक्रवर्ती ने लिखा है कि ज़रूरत से ज्यादा चालाकी दिखाने वाली यह फिल्म ओशियंस इलेवन से प्रेरित है मगर बंटी और बबली के भी आसपास नहीं है। वे साफ कहते हैं कि घर पहुंचने से काफी पहले आप भूल चुके होते हैं कि आपने फिल्म में क्या देखा। महत्वाकांक्षा की सरलीकृत प्रस्तुति के कारण उन्होंने भी इसे ढाई स्टार के ही लायक माना है। एम.पॉल पूछते हैं कि चालबाजी देखने आया दर्शक अच्छे-बुरे का फर्क(इंटरवल के बाद) क्यों समझना चाहेगा? उनकी ओर से भी फिल्म को मिले सिर्फ ढाई स्टार। निखत काजमी का कहना है कि फिल्म बंटी और बबली के करीब न सही,मगर इसमें काफी कुछ देखने लायक है। इसलिए उनकी ओर से मिले तीन स्टार। चंद्रमोहन शर्मा ने भी यह मानते हुए कि इस फिल्म में बिजनेस के ऐसे कई आइडियाज हैं जिनके बारे में आपने सुना भले हो,मगर उसका अंजाम नहीं देखा होग,इसे तीन स्टार दिये हैं। फ्रेश आइडिया,बढिया अभिनय और अच्छे संगीत के कारण विशाल ठाकुर ने इसे मस्त श्रेणी के बीचो बीच रखा है जिसे सर्वाधिक साढे तीन स्टार के बराबर माना जा सकता है। अंत में, प्रीतम डी. गुप्ता की टिप्पणी जो ध्यान दिलाते हैं कि यशराज बैनर जिसे चाहे फिल्म में लेने की हैसियत रखता है,उसके पास सबसे बढिया डिस्ट्रीब्यूशन नेटवर्क और तकनीकी साधन हैं,फिर भी हाल के वर्षों में उनकी सारी पेशकश औसत दर्जे की रही है। कमजोर प्रेमकथा और औसत अभिनय भी चलता है मगर बेवकूफाना हरकत कैसे बर्दाश्त किया जा सकता है!

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