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Thursday, May 20, 2010

प्रतिभा और प्रचार-तंत्र

गीतकार जावेद अख्तर इस्लामी शिक्षण संस्थान दारुल उलूम देवबंद द्वारा मुस्लिम महिलाओं के पुरुषों के साथ काम करने के खिलाफ दिये गये फतवे की आलोचना करने के बाद से कट्टरपंथियों की धमकियों का सामना कर रहे हैं। शिवसेना ने मुखपत्र 'सामना' में जावेद अख्तर और कभी पटकथा लेखन में उनके भागीदार रहे सलीम की जमकर तारीफ की है। संपादकीय में कहा गया है, 'सलीम और जावेद, दोनों ने मुसलमानों में कट्टरपन के खिलाफ हमेशा आवाज उठाई है...जावेद को फतवे के खिलाफ टिप्पणी करने और इसे जारी करने वालों को मूर्ख तथा 'उन्मादी' कहने के लिये धमकियां मिली हैं। लेकिन वह ऐसे नहीं हैं जो इन धमकियों से डर जाएं।' जावेद और सलीम, दोनों ने 1970 और 80 के दशक में कई सफल फिल्में एक साथ लिखी थीं। इन दोनों के सफर पर 19 मई के दैनिक भास्कर में जयप्रकाश चौकसे ने भी विचार किया हैः
"जावेद अख्तर का कहना है कि हिंदू और मुसलमान अतिवादी संगठन उन्हें धमकी दे रहे हैं। सलीम खान को भी इस तरह की धमकियां मिलती रही हैं। उन्होंने दैनिक भास्कर में लिखे अपने दर्जनों लेखों में से आधे में आतंकवादियों की कटु आलोचना की है। अतिवादी संगठनों से सहानुभूति रखने वाले कुछ लोगों ने उनके खिलाफ मोर्चा निकाला है और उनके पुतले जलाए हैं। खरगौन के एक पुराने पहचान वाले ने उनसे आर्थिक मदद प्राप्त करने के बाद धन लौटाने की बात की, क्योंकि गणपति उत्सव मनाने वाले मुसलमान की मदद उन्हें स्वीकार नहीं थी। यह अलग बात है कि धन कभी लौटाया नहीं गया।

सलीम और जावेद में एक समानता यह है कि दोनों ही सच्चे धर्मनिरपेक्ष व्यक्ति हैं और उन्होंने फिरकापरस्तों की जमकर आलोचना की है। दोनों ही जहीन और पढ़े-लिखे आधुनिक व्यक्ति हैं। उनके विचारों में कुछ और समानताएं भी होंगी, जिस कारण इतने वर्ष तक लेखकीय साझेदारी जारी रही। उनमें विवाद भी हुए होंगे, क्यांेकि कोई दो व्यक्ति सभी मुद्दों पर एकमत नहीं हो सकते। अपने अलगाव के कारणों पर दोनों ने हमेशा गरिमामय खामोशी बनाए रखी है। सलीम साहब ने जावेद के बेटे फरहान अख्तर को ‘रॉक ऑन’ फिल्म में शानदार अभिनय के लिए अपनी जीती हुई फिल्मफेयर ट्रॉफी भी दे दी।

बहरहाल जावेद अख्तर सामाजिक मुद्दों पर सक्रिय हैं और अनेक क्षेत्रों में भागीदारी करते हैं। मीडिया के साथ उनके मधुर संबंध हमेशा रहे हैं और वे सुर्खियों में बने रहने की कला में माहिर हैं। उनके इरादे नेक हैं और प्रभाव क्षेत्र व्यापक है। उन्होंने कॉपीराइट एक्ट के संशोधन में सशक्त भूमिका निभाई है। यह बात अलग है कि इसके लागू होते ही उद्योग को भारी हानि होगी।

बहरहाल जावेद अख्तर जितने मुखर और उजागर हैं, सलीम खान उतने ही मितभाषी और खामोश हैं। विगत दो दशकों में वे दर्जन भर जीवनपर्यन्त सेवा के कई फिल्म पुरस्कार निमंत्रण अस्वीकृत कर चुके हैं। जावेद अख्तर बाजार युग की नब्ज को जानते हंै और प्रचार तंत्र की भीतरी कार्यशैली से भी वाकिफ हैं। शायद उनका यकीन है कि स्वाभाविक प्रतिभा का भरपूर बाजार दोहन करने के लिए कई पापड़ बेलने पड़ते हैं। उन्होंने अपनी प्रतिभा के लघुतम अंश को भी जाया नहीं किया है। निदा फाजली के पास गजब की प्रतिभा है, परंतु वे किसी से मिलते-जुलते नहीं हैं और उन्हें प्रतिभा के दोहन में रुचि नहीं है।

जावेद अख्तर से भिन्न सलीम खान सरेआम उजागर होने में यकीन नहीं करते। अतिवादी संगठनों से दोनों को धमकियां मिलती रही हैं, परंतु दोनों ने अपने-अपने ढंग से उसे लिया है। चिंतनीय बात यह है कि फिरकापरस्ती के खिलाफ बोलना भारत में निरापद नहीं है। सच तो यह है कि भ्रष्टाचार इत्यादि मामलों पर भी विचार अभिव्यक्त करते ही डर की ताकतें सजग हो जाती हैं।

आज नेता भी तथाकथित वोट बैंक के कारण सामाजिक कुरीतियों को बढ़ावा देने वाले संगठनों के साथ मिले हुए हैं। आज के युग में सफलता एक मंत्र है जिसे सब लोग नहीं साध पाते, परंतु अफसोस तो यह है कि प्रतिभा भी मंत्र की गुलाम है। आज ब्रांड वैल्यू विकसित करने के लिए बहुत से काम करने पड़ते हैं, जिनमें ऊर्जा का अपव्यय होता है। बहरहाल शायर होते हुए भी जावेद अख्तर बहुत दुनियादार हैं और सलीम खान शायर नहीं हैं, परंतु जीवन को शायरी की तरह अच्छे से साधते हैं।"

1 comment:

  1. अच्छा प्रयास है ...कम से कम लीक से हटकर कुछ तो है.
    इक नज़र यहाँ भी मार लीजिये
    www.jugaali.blogspot.com

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