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Friday, March 5, 2010

दिल्ली मे गुलजार

दिल्ली विश्वविद्यालय का साउथ कैंपस 4 मार्च को दिनभर गुलजार रहा। मौका था लोकप्रिय गीतकार गुलजार के संग छात्रों व शिक्षकों का एक दिन बिताने का। कभी कविता तो कभी सवाल जवाब और चाय व गप्पशप के बहाने दिनभर उनकी महफिल जमी।
विश्वविद्यालय के इंस्टीट्यूट ऑफ लाइफ लॉन्ग लर्निंग ने उन्हें विशेष तौर आमंत्रित किया था। कार्यक्रम की शुヒआत उनके स्वागत सम्मान से हुआ। इसके बाद सवाल जवाब का सत्र आयोजित हुआ। छात्रों ने कला और जीवन से जु़ड़े तरह तरह के सवाल गुलजार से पूछे। एक छात्र के सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि जिस कला में जीवन नहीं हो वह सिर्फ शिल्प रह जाएगा। कला वहीं है जिसमें जीवन है। सोचने और लिखने के सवाल पर उन्होंने कहा कि पहले सोचता हूं तब फिर लेखन करता हूं। इसके अलावा कई और रूचिकर सवाल छात्रों ने किए। इस मौके पर साउथ कैंपस के निदेशक प्रो दिनेश सिंह ने कहा कि आज कैंपस में यादगार महफिल जमी है। गुलजार साब के कलम के रंग में विमल रॉय के जमाने के मुम्बई की मासूमियत और खुशबू से लेकर रावी और यमुना की महक सबकुछ शामिल हैं। संयुक्त निदेशक प्रो मालाश्री लाल ने गुलजार का स्वागत किया।
छात्रों के साथ सवाल जवाब के सत्र के बाद गुलजार ने करीब डे़ढ़ घंटे तक अपनी अलग अलग रंगों में रंगी नज्में सुनाईं। डिप्टी डीन दिनेश वार्ष्णेय ने बताया कि इनमें जीवन के हर पहलू को छुआ। चाहे वह प्यार हो या गरीबी, मेहनतकश महिलाएं हो या राजनीति। सितारों से लेकर स़ड़क पर रहने वाले आम मजदूर तक की बातें उन्होंने अपने नज्म के माध्यम से खूबसूरती से कही। उनके इस नज्म को सुनने के लिए साउथ कैंपस और आसपास के कॉलेजों के छात्र ब़ड़ी तादाद में पहुंचे। आलम यह कि एसपी जैन सभागार में ख़ड़े होने तक की जगह नहीं रही। नज्म सुनाने के बाद गुलजार करीब घंटे भर तक छात्रों के साथ बांस की बनी अनूठी कैंटीन में भी वक्त गुजारा।

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