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Sunday, February 21, 2010

सुजीत कुमार के कुछ अनछुए पहलू

मेरे पिता और मैं, पिता-पुत्र से ज्यादा एक-दूसरे के बेस्ट फ्रैंड थे। मैं विदेश में बोर्डिग स्कूल में पढता था, इसलिए पिताजी के करीब आने का मौका मुझे तभी मिला, जब 16 साल की उम्र में मैं हिंदुस्तान लौटा। धीरे-धीरे हम एक-दूसरे को बहुत अच्छी तरह समझ गए।

मेरी नजरों में पिताजी एक ऎसे इंसान हैं, जिन्होंने कभी हार नहीं मानी। दस साल से ज्यादा वक्त तक वे कैंसर से जूझते रहे। वे शरीर और आत्मा से बहुत मजबूत थे। उन्हें समुद्र किनारे वर्कआउट करना बहुत अच्छा लगता था। वे अपनी सेहत और फिटनैस का बहुत ध्यान रखते थे,इसलिए रोजाना जिम जाते थे। उन्होंने अपने दोस्तों जीतेंद्र अंकल और राकेश रोशन अंकल को भी फिट रहने के लिए प्रेरित किया। जब हम सनी देओल और राहुल देव के साथ 'चैंपियन'पर काम कर रहे थे,तो पिताजी की फिटनैस देखकर राहुल देव बहुत प्रभावित हुए। पिताजी की आंखों से मासूमियत झलकती थी और उनकी शख्सियत दमदार थी। यही वजह है कि वे पुलिस इंसपेक्टर के किरदार के लिए ज्यादातर फिल्मकारों की पहली पसंद थे।

पिताजी बहुत मेहनती और ईमानदार आदमी थे। वे कभी नाराज नहीं होते थे, उनके पास हर प्रॉब्लम का सॉल्यूशन होता था। पिताजी ने फिल्म इंडस्ट्री में जगह बनाने के लिए बहुत स्ट्रगल किया। उन्होंने मुझे मैरीन ड्राइव स्थित वो बिल्डिंग भी दिखाई थी,जिसके गैराज में वे कभी एक वॉचमैन के साथ रहे थे। बहुत कम लोग जानते हैं कि पिताजी किशोर कुमार साहब के पहले और आखिरी असिस्टेंट थे। उस जमाने में उन्हें रोजाना एक रूपया मिलता था। लोग आज भी पिताजी को राजेश खन्ना के दोस्त के रूप में जानते हैं, जो उनके साथ फिल्म 'आराधना' के गाने 'मेरे सपनों की रानी...' में जीप में चलाते हुए नजर आते हैं। यह गाना और यह फिल्म सभी के लिए बहुत अच्छी साबित हुई। उन दिनों पिताजी काफी बिजी एक्टर थे। राजेश खन्ना अंकल तब एक फिल्म के लिए एक लाख रूपए और मेरे पिताजी 75 हजार रूपए लेते थे। काकाजी (राजेश खन्ना)की तरह रामानंद सागर के साथ भी पिताजी के बहुत अच्छे रिश्ते थे। रामानंद सागर की करीब-करीब हर फिल्म में पिताजी ने काम किया था। पिताजी बी.आर.चोपडा और शक्ति सामंत के भी बहुत अच्छे दोस्त थे। पिताजी बताते थे कि वे और धर्मेद्र अंकल खूब मस्ती करते थे। उन दिनों जुहू का डवलपमेंट हो रहा था, तब यहां सिर्फ तीन बंगले हुआ करते थे- रामानंद सागर का, धरमजी का और मेरे पिताजी का। जीतेंद्रजी और राकेश रोशन के अलावा ऋषि कपूर और प्रेम चोपडा भी पिताजी के अच्छे दोस्त थे।

पिताजी भोजपुरी फिल्मों के पहले सुपर स्टार थे। बनारस से थे, इसलिए वे भोजपुरी फिल्मों को नेशनल लेवल पर पहचान दिलवाना चाहते थे। उन्होंने भोजपुरी फिल्म 'पान खाए सैंया हमार' लिखी और उसका निर्देशन भी किया। इस फिल्म में अमिताभ बच्चन मेहमान किरदार में नजर आए थे। यह फिल्म बहुत बडी हिट साबित हुई। एक्टर के रूप में पिताजी आखिरी बार भोजपुरी फिल्म 'गब्बर सिंह' में नजर आए थे। बालाजी के बैनर तले बनी इस फिल्म में जीतेंद्र अंकल भी थे।
फिल्म प्रोड्यूसर के नाते पिताजी अच्छी कहानियों पर
फिल्में बनाना पसंद करते थे। उन्होंने हमेशा अच्छे निर्देशकों
पर भरोसा किया, अब्बास-मुस्तन और राकेश रोशन उनके फेवरिट थे। (बीएनएस)

प्रमुख फिल्में
बतौर एक्टर ह्व 1963-बिदेसिया (भोजपुरी), 1964-कोहरा, 1968-आंखें, औलाद, 1969-आराधना, इत्तफाक, 1970-आन मिलो सजना, गीत, नया रास्ता, परदेसी, 1971-हाथी मेरे साथी, अमर प्रेम, 1972-मेरे जीवन साथी, ललकार, 1973-जुगनू, ज्वार भाटा, सूरज और चंदा, 1974-अमीर गरीब, रोटी, हमराही, 1975-आक्रमण, 1976-आपबीती, महबूबा, चरस, 1977-आदमी सडक का, धरम वीर, दिलदार, ड्रीम गर्ल, 1978-देस परदेस, दंगल (भोजपुरी), 1979-द ग्रेट गैंबलर, 1980-अब्दुल्ला, राम बलराम, शान, टक्कर, 1982-बगावत, काम चोर, 1983-अवतार, महान, पुकार, 1985-आखिर क्यों, 1986-धर्मअघिकारी, 1990-कृष्ण कन्हैया, 1993-तिरंगा, 1994-क्रांतिवीर
बतौर डायरेक्टर ह्व 1984-पान खाए सैंया हमार (भोजपुरी) बतौर प्रोड्यूसर ह्व 1986-अनुभव, 1991-खेल
(सुजीत कुमार के पुत्र का यह आलेख 21 फरवरी के राजस्थान पत्रिका में छपा है)

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