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Friday, February 5, 2010

फांसःएक जासूस की कहानी-फिल्म समीक्षा

कलाकार : कानन मल्होत्रा , मोइन खान , शीवा , रजा मुराद , रेशमा मोदी , अमिता नागिया , विद्या सिन्हा , जवाहर , निर्माता : जवाहर लाल जयरथ

स्क्रिप्ट डायरेक्टर : ए . चित्राश
गीत : संजय मिश्रा
संगीत : दिलीप सेन - मिलिंद जोशी
सेंसर सर्टिफिकेट : यू
अवधि : 125 मिनट
रेटिंग : 1/2
इस फिल्म को देखने के बाद मानना पड़ेगा कि स्क्रीन पर अपनी ज्यादा से ज्यादा सूरत दिखाने की चाह में कोई प्रड्यूसर कहानी का सत्यानाश कर सकता है। ऐसा नहीं स्क्रिप्ट में बिल्कुल भी दम नहीं और डायरेक्टर की फर्स्ट टू लास्ट फिल्म पर जरा भी पकड़ नहीं , इसके बावजूद अगर दर्शक इस फिल्म को देखकर खुद को सौ फीसदी ठगा महसूस करता है तो इसका पूरा क्रेडिट फिल्म के निर्माता के नाम जाता है। करीब 60 साल के फिल्म निर्माता को ना जाने किसने सलाह दी कि उन्हें अपनी फिल्म में सबसे पावरफुल किरदार खुद करना चाहिए और निर्माता साहब यहीं करने पर ऐसे आमादा हुए कि लगता है डायरेक्टर को वही करना पड़ा जैसा प्रड्यूसर ने कहा।
बॉलीवुड में दो देशों के बीच अंदरूनी खबरों को लेते जासूसों पर दर्जनों फिल्में बनी हैं , ऐसे में बात जब भारत और पाकिस्तान के बीच की हो तो कहानी को और ज्यादा दमदार बनाया जा सकता है। वहीं अगर इस फिल्म को देखा जाए तो लगता है जैसे डायरेक्टर ने इस सब्जेक्ट का मजाक उड़ाया है।
अगर कहानी , डायरेक्शन , एक्टिंग की बात जाए फिल्म में ऐसा कुछ भी नहीं जो दर्शकों को किसी भी पैमाने पर बांध सके। कहानी शुरू होती है 1998 से है जब भारत ने पोखरण में परमाणु विस्फोट किया और दोनों देशों के बीच जंग जैसे हालत पैदा हो गए। इस प्रकरण को निर्देशक ने जासूसी से जोड़कर पेश किया और यह दिखाने की कोशिश की किस तरह एक जासूस की समझदारी और जांबाजी से जंग टली। डायरेक्टर ने इंटरवल तक तो कहानी को कुछ संभाला लेकिन इंटरवल के बाद दादा जी के रोल में निर्माता जवाहर ऐसे पर्दे पर छाए कि बाकी किरदार बौने पड़ते गए और यहीं से कहानी ऐसी उलझी कि अंत तक संभल नहीं पाई।
रजा मुराद, विद्या सिन्हा, अमिता नागिया जैसे मंझे हुए कलाकारों के बावजूद फिल्म में कोई भी प्रभावित नहीं कर पाता। हां, फिल्म में आइटम सांग, कव्वाली और गाने सब कुछ है लेकिन अगर कुछ नहीं है तो वह है दर्शकों को हॉल में बिठाए रखना वाला कोई एक भी फॉर्म्युला। यही वजह है शुक्रवार को इक्का दुक्का थिएटरों पर प्रदर्शित हुई फिल्म देखने पहुंचे दर्शक उंगलियों पर गिने जा सकते थे।
(चंद्रमोहन शर्मा,नभाटा,दिल्ली,6.2.10)




















(टाइम्स ऑफ इंडिया,दिल्ली,5.2.10)

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