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Friday, February 5, 2010

कॉपीराइट के विवाद में फंस गया इब्नेबतूता का जूता

फिल्म इश्किया का गाना इब्नेबतूता दर्शकों को काफी पसंद आ रहा है, लेकिन गीतकार गुलजार के इस गीत पर कवि सर्वेश्वर दयाल सक्सेना के परिवार वाले काफी दुखी हैं क्योंकि उनकी कविता से प्रेरित होकर लिखे गए इस गाने में कहीं भी इस दिवंगत कवि को श्रेय नहीं दिया गया है। अपनी गजलों से लोगों को मंत्रमुग्ध करने वाले गुलजार ने सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की कविता पर इस गाने के बोल लिखे हैं। सक्सेना ने मोरक्को के विद्वान इब्नेबतूता के घुम्मकड़ रवैए को दर्शाने के लिए एक कविता लिखी थी। लेकिन फिल्म में कहीं भी इस कवि को श्रेय नहीं दिया गया। सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की बेटी विभा सक्सेना ने कहा, जी हां, मेरे पिताजी ने इब्नेबतूता पर कविता लिखी थी, लेकिन गुलजार साहब ने इसमें थोड़े बदलाव करते हुए यह गाना लिखा है। हमें दुख इस बात का है कि कहीं भी उन्हें श्रेय नहीं दिया गया या ऐसा नहीं बताया गया कि यह गाना सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की कविता इब्नेबतूता से प्रेरित है। उन्होंने कहा, गुलजार साहब खुद एक कवि हैं और अगर वह गाने की पंक्तियां कहीं से उतारते हैं तो उसे हमेशा श्रेय देते हैं। उनकी गरिमा इसी में होगी कि वे मेरे पिताजी को श्रेय दें क्योंकि मेरे पिताजी अब इस दुनिया में नहीं हैं। सक्सेना की कविता के बोल इस प्रकार है, इब्नेबतूता पहन के जूता, निकल पड़े तूफान में, थोड़ी हवा नाक में घुस गई, घुस गई थोड़ी कान में। कभी नाक को, कभी कान को, मलते इब्नेबतूता, इस बीच में निकल पड़ा, उनके पैरों का जूता। उड़ते उड़ते जूता उनका, जा पहुंचा जापान में, इब्नेबतूता खड़े रह गए, मोची की दुकान में।
सर्वेश्वर दयाल सक्सेना के बारे में और अधिक जानने के लिेए क्लिक करें।
(दैनिक जागरण,राष्ट्रीय संस्करण,5.2.10)

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