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Saturday, February 27, 2010

कार्तिक कॉलिंग कार्तिकःफ़िल्म-समीक्षा

कलाकार : फरहान अख्तर , दीपिका पादुकोण , राम कपूर
निर्माता : फरहान अख्तर , रितेश सिद्धवानी
निर्देशन : विवेक लालवानी
गीत : जावेद अख्तर
संगीत : शंकर , एहसान , लॉय
सेंसर सर्टिफिकेट : यू /
अवधि : 129 मिनट।
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फरहान अख्तर की इस फिल्म में आपको सस्पेंस के साथ - साथ रोमांच भी मिलेगा। लेकिन फिल्म जब खत्म होगी , तो आपको महसूस होगा कि यह तो आप पहले से जानते थे। इंटरवल से पहले तक हॉल में बैठा दर्शक यह जानने को बेताब था कि आखिर कार्तिक को फोन करने वाला कौन है। वहीं , इंटरवल के बाद कहानी कुछ ऐसा कुछ मोड़ लेती है कि यह सस्पेंस लगभग खत्म सा हो जाता है। यंग डायरेक्टर विजय लालवानी ने भले ही अपने काम को बखूबी अंजाम देने की कोशिश की , लेकिन वहीं अपने खास दोस्त फरहान को स्क्रीन पर ज्यादा से ज्यादा फुटेज देने के चक्कर में वह खुद ही भटक गए।

कहानी : पूरी फिल्म शुरू से एंड तक कार्तिक के आसपास टिकी है। मन के अंदर समाया एक वहम इंसान को किस कदर बेबस और डरा हुआ बना देता है , यही इस फिल्म का निचोड़ है। हर एग्जाम में अव्वल रहने वाला कार्तिक नारायण ( फरहान अख्तर ) अचानक रीयल लाइफ में पूरी तरह फिसड्डी बन जाता है। काबिल और काम में वफादार रहने के अलावा घंटों तक एक्स्ट्रा काम करने के बाद भी उसे प्रमोशन तो दूर , हर बार बॉस ( राम कपूर ) की बातें सुननी पड़ती हैं। ऑफिस में अपनी सीनियर शौनाली ( दीपिका पादुकोण ) को तीन साल से प्यार करने वाले कार्तिक में इतनी भी हिम्मत नहीं है कि वह ईमेल से भी अपने प्यार का इजहार कर सके। जिंदगी के हर मोड़ पर मिल रही नाकामी से परेशान कार्तिक जिंदगी खत्म करने का फैसला करता है। एक दिन सुबह करीब पांच बजे कार्तिक जब नींद की गोलियां खाने के लिए पानी का गिलास हाथ में लेता है , तभी उसके घर में लगे फोन की घंटी उसकी जिंदगी पूरी तरह से बदल देती है। इस कॉल के बाद कार्तिक को वह सब कुछ मिल जाता है , जिसे हासिल करने के लिए वह तरस रहा था। लेकिन यही फोन की घंटी उसकी जिंदगी को एक बार फिर अर्श से फर्श पर ले आती है।

एक्टिंग : यकीनन फरहान ने इस बार फिर साबित किया कि उनके अंदर भूमिका को जीवंत करने का जज्बा है। कार्तिक के करैक्टर को फरहान ने दो बिल्कुल अलग लुक में पेश किया है। फिल्म की शुरुआत में चश्मा पहने हुए , बॉस की डांट खाने वाले और बाद में बॉस के केबिन में जाकर बॉस से मनचाही टर्म्स मनवाने वाले कार्तिक के रूप में फरहान खूब जमे हैं। पिछली फिल्मों के मुकाबले दीपिका इस फिल्म में बिल्कुल अलग और फ्रेश लुक में नजर आईं। शैफाली शाह मनोचिकित्सक के रोल में टाइप्ड लगीं , तो राम कपूर ने सिवाय चिल्लाने के कुछ और नहीं किया।

डायरेक्शन : विजय लालवानी ने अपनी पहली ही फिल्म में साबित कर दिया कि इस फील्ड में उनका सफर लंबा है। स्क्रिप्ट और डायलॉग के अलावा उन्होंने फिल्म के कलाकारों से बेहतर काम लेने की कोशिश की है। उनकी तारीफ करनी होगी कि उन्होंने ऐसे सब्जेक्ट पर फिल्म बनाई , जिसे दूसरे डायरेक्टर लगभग अछूत समझते हैं और कहानी को कहीं कमजोर नहीं पड़ने दिया। हां , इंटरवल के बाद कई बार कहानी पटरी से भटकी , लेकिन एंड तक आते - आते विजय ने संभाल लिया।

संगीत : शंकर , एहसान , लॉय और जावेद ने एक बार फिर कहानी पर पूरी तरह से फिट संगीत दिया है। कैसे मैं बताऊं , उफ तेरी अदा , कैसी है ये उदासी और फिल्म का टाइटिल सॉन्ग पहले से ही टीनएजर्स की जुबां पर है। हां , अपनी पिछली फिल्मों की तरह इस बार फरहान ने अपनी आवाज में कोई गाना नहीं गाया।

क्यों देखें : फरहान और दीपिका की बेहतरीन केमिस्ट्री , कोचीन की आउटडोर लोकेशन की गजब फोटोग्राफी। अगर आप फैमिली के साथ एंटरटेनमेंट के मकसद से जा रहे हैं , तो शायद निराशा हाथ लगे।
(चंद्र मोहन शर्मा,नभाटा,26.2.10)
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नवोदित निर्देशक विजय ललवानी फिल्म 'कार्तिक कालिंग कार्तिक' से बॉलीवुड में ठीक ठाक शुरुआत करते दिख रहे हैं। रॉक ऑन, लक बॉय चांस के बाद फरहान अख्तर एक बार फिर संजीदा रोल में हैं। इंसान के अवचेतन में बैठा एक भय कभी-कभी जिंदगी को कितना बदल सकता है,यही बात इस फिल्म की थीम है। एक मेधावी युवा की जिंदगी में आने वाले उतार-चढ़ाव को दिखाया गया है। फिल्म में भय, रोमांस और कॉरपोरेट जगत का मिलाजुला ताना -बाना है, जो एक युवा की जिंदगी के आसपास घूमता है। फिल्म का संपादन बेहतर है, लेकिन बैकग्राउंड म्यूजिक कमजोर है।

फिल्म की कहानी कार्तिक (फरहान अख्तर) नाम के एक ऐसे युवा के आसपास घूमती है जो अपने अवचेतन में छुपे डर के कारण अपनी भावनाएं व्यक्त नहीं कर पाता है। वह आईआईएम से पासआउट है लेकिन लोग उसको नोटिस नहीं करते हैं, यहां तक की ऑफिस की जिस लड़की सोनाली मुखर्जी (दीपिका पादुकोण) से वह प्यार करता है उससे भी वह अपनी बात नहीं कह पाता है। लेकिन एक अनजान फोन कॉल उसकी जिंदगी में परिवर्तन ला देता है। कार्तिक नाम से हर रात आने वाले इस फोन कॉल्स पर वह बातें करता है और उसके कहे अनुसार वह अपनी जिंदगी जीने लगता है। वह लोगों को ना कहने की आदत सीख लेता है और अपने अधिकारों की पहचान भी उसे हो जाती है, साथ ही उसे सोनाली का प्रेम भी मिल जाता है। इंटरवल के बाद फिल्म में ट्विस्ट है, जब पता चलता है कि अनजान फोन कॉल्स कार्तिक का अपने खुद का रिकार्ड किया हुआ, उसके अवचेतन में दबा डर होता है जिसे वह रिकार्ड कर फोन में सेव करता है लेकिन उसे खुद इस बात का ध्यान नहीं रहता है। बाद में डॉक्टर कपाड़िया और सोनाली कार्तिक की मदद कर उसे उसके अवचेतन में छिपे डर के बारे में बताते हैं, उसे यह भी पता चल जाता है कि उसका कोई भाई नहीं था और उसकी मौत के लिए वह जिम्मेदार नहीं है।

फिल्म का पहला भाग कॉरपोरेट कल्चर और रोमांस की धुरी पर घूमता है, तो दूसरे भाग में थ्रिलर का तड़का है। संवाद बेहतर हैं लेकिन एक दो गीतों के अलावा गीत-संगीत कुछ कमजोर सा है।फिल्म का संपादन बेहतर है। फिल्म की सबसे बड़ी कमजोरी उसकी रफ्तार है। विशेषकर इंटरवल के बाद, कहानी खिसकती हुई आगे बढ़ती है। इस मायने में यह बहुत बेहतर फिल्म तो नहीं कही जा सकती, लेकिन निर्देशक के प्रयास को आप नकार नहीं सकते, ऐसा बहुत कुछ है जो देखने योग्य है। विशेषकर फरहान अख्तर का अभिनय फिल्म की सबसे बड़ी विशेषता है और एक सधे हुए अभिनेता के रूप में प्रभाव छोड़ने में कामयाब रहे हैं। थ्रिल और रोमांस पसंद करने वाले युवा दर्शकों को फिल्म पसंद आएगी।
(राजेश यादव,दैनिक भास्कर,दिल्ली संस्करण,26.2.10)

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